असफलता से डरते तो तीन पेज की एल्गोरिदम महाशक्तिशाली गूगल ना बनती : ललित कुमार

असफलता से डरते तो तीन पेज की एल्गोरिदम महाशक्तिशाली गूगल ना बनती : ललित कुमार


इंदौर । कविता कोष-गद्य कोष के संस्थापक ललित कुमार के सम्मान एवं दिव्यांग विमर्श को समर्पित चार दिवसीय महोत्सव का आखिरी आयोजन देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी संस्थान में संपन्न हुआ। संस्थान की साहित्य समिति द्वारा आयोजित व्याख्यान 'प्रौद्योगिकी और साहित्य' में ललित कुमार ने भावी इंजीनियर्स को नवाचार, व्यावहारिक सोच और बिना परिणाम की चिंता किए अपनी तकनीकी क्षमता का उपयोग नए स्टार्टअप लांच करने में करने की सलाह दी।


शहर की अनेक साहित्यिक-सामाजिक संस्थाओं के सहयोग से आयोजित चार दिनी समारोह 'सम्मान सच्चे हीरो का, सम्मान ललित कुमार का' की अंतिम कड़ी देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के इंजीनियरिंग कॉलेज-आईईटी में संपन्न हुई। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रभारी निदेशक डॉ. वृंदा टोकेकर ने की। संयोजक आलोक वाजपेयी एवं काव्यकोश की संयुक्त निदेशक शारदा सुमन भी उपस्थित थे। संस्थान की साहित्य समिति के प्रमुख डॉ. शरद चौधरी ने अतिथियों का अभिनंदन किया। मुख्य वक्ता ललित कुमार के इस प्रेरक उद्बोधन में इंजीनियर्स की मूलसोच को व्यावहारिक जीवन में उपयोग में लाने लायक टूल्स में बदलने की ओर प्रयास करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि भारत के पास न अपना सर्च इंजन है, ना ऑपरेटिंग सिस्टम, यहां तक कि कोई अपना सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तक नहीं है। विंडोज, गूगल, क्रोम, फेसबुक, वाट्सएप, इंस्टाग्राम इत्यादि सभी विदेशी मूल के हैं, जिनका उपयोग भारत सरकार के प्रतिष्ठान भी करते हैं, जो कि सुरक्षा के लिहाज से ठीक नहीं। लेकिन, भारतीय इंजीनियर्स नींव का पत्थर बनने और किताबों से बाहर व्यावहारिक सोच के मामले में पिछड़ जाते हैं।


 

उन्होंने इंजीनियर्स से आह्वान किया कि वे बिना किसी असफलता से डरे मूल व्यावहारिक सोच को अपने तकनीकी ज्ञान के माध्यम से प्रोडक्ट बनाने में लगाएं। उसकी सफलता कितनी होगी या नहीं होगी, इसका आकलन समय को करने दें। उन्होंने उदाहरण दिया कि गूगल मात्र तीन पेज की एक एल्गोरिदम है, जिसे इसके फाउंडर्स ने कॉलेज परीक्षा के असाइनमेंट के लिए लिखा था, लेकिन वह छोटा सा प्रयास आज एक महाशक्ति बन चुका है। ललित कुमार ने कहा कि आज सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग मे साहित्य के प्रचार प्रसार के अभूतपूर्व अवसर हैं। उन्होंने विद्यार्थियों को क्रॉस कैपेबिलिटी का महत्व समझने और अपने कोर्स के बाहर भी देखने-समझने की राय दी।


 

एक प्रश्न के जवाब में दिव्यांगों से एकदम बराबरी का व्यवहार करने और जब वे चाहें तभी और उतनी ही मदद करने की अपील की। इसके साथ ही अपने आसपास की सुविधाओं को सभी के लिए एक समान सुलभ या एक्सेसिबल बनाने के प्रति जागरूक रहने की भी बात कही। ललित कुमार के उद्बोधन में विश्वविद्यालय के अनेक शिक्षण विभागों के विद्यार्थी और शिक्षक मौजूद थे।