मरने के लिए कुछ करना जरूरी नहीं है : गणाचार्य विराग सागर महाराज
भिंड । दुुनिया में हर आदमी जन्म-मरण के आतंक से भयभीत है। यहां से जाने के बाद लौटकर आने का मतलब है, कि हम फिर मरने को आ गए। हम फिर ऐसे काम कर गए, जिससे मरना पड़ेगा मरने के लिए कुछ कलाएं सीखना जरूरी नहीं है। मरने के लिए कुछ करना भी जरूरी नहीं है। नदी में डूबने के लिए कुछ करने की जरूरत नहीं। जरूरत तैरने के लिए है तैरना कला डूबना वाला है। डूबने वाला जब डूबा तब भी कुछ न कर सका और जब निकला तब भी मरा निकला कुछ नहीं कर रहा है। यह बात मंगलवार को 1008 अजितनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र बरही जैन मंदिर में गणाचार्य विराग सागर महाराज ने श्री 1008 मज्जिनेन्द्र अजितनाथ पंचकल्याणक के मोक्षकल्याणक के दौरान कही।
उन्होंने कहा कि धर्म हमेशा जीने की कला सिखाता ह।ै मरने की नहीं मरना अधर्म सिखाता है। हर आदमी का सपना जीने का ही है। आज हमें ऐसा आदमी न मिला जिसे मरने में आनंद आता हो। किसी को आत्म हत्या करने में फांसी लगा लेने में सल्फास खा लेने में आनंद नहीं आता बहुत ही गम दिल में भर जाता है। तब इन कार्यों के द्वारा उभर के आता है।
आचार्यश्री ने कहा किजीने की कला सीखने का मतलब स्पष्ट है किसीखने वाला कभी भी मरना नहीं चाहता अथवा वह मौत को डराकर मारना चाहता है। जीने की कला को जो इंसान जीवन में उतार लें, उसकी जिंदगी जिंदा हो जाती है, उसकी उम्र अनंत वर्षो की हो जाती है। वह सर्वशक्तिमान हो जाता है। यह जीने की कला सीखने का अधिकार केवल इंसान को है इसके अलावा धरती पर किसी भी प्राणी को नहीं हैं।
अजितनाथ महाराज को मोक्ष की प्राप्ति हुई :
पंचकल्याणक के अंतिम दिन अजितनाथ मुनिमहाराज को सुबह मोक्ष की प्राप्ति हुई। उन्होनें अपने अंदर केवलज्ञान को प्रकट करके अरिहंत अवस्था को प्राप्त कर आज अपने शरीर का त्याग कर सिद्ध हो गए। इसीलिए इसे मोक्षकल्याण कहा जाता है। इसी दिन अजितनाथ महाराज अहिरंत अवस्था को प्राप्त कर निर्वाण को प्राप्त किया। सिद्धशिला में जाकर विराजमान हो गए। मोक्षपद वह पद होता है, जहां पर व्यक्ति अपने जन्म-मरण से छुटकारा पा लेता है, फिर न तो उसका जन्म होता है और न ही मरण वह निर्वाण पद को प्राप्त कर फिर कभी भी संसार में भ्रमण नहीं करता यही पद सिद्ध पद भी होता है।
गजरथ के साथ निकाली शोभयात्रा :
मोक्षकल्याणक महामहोत्सव कार्यक्रम हो जाने के बाद भव्य शोभायात्रा निकाली, जिसमें हाथी, घोड़े-बग्घी शामिल थे। गजरथ शोभयात्रा ने अतिशय क्षेत्र के चारों ओर परिक्रमा लगाई। शोभायात्रा में श्रद्धालु बैंडबाजों की धुनों पर नाचते-गाते हुए चल रहे थे। दोपहर बाद गणाचार्य विराग सागर महाराज और आचार्य विनम्र सागर महाराज ने भिंड के लिए मंगल विहार किया।